बुधवार, 11 जनवरी 2012

'माली'



सींच रहे हो,
बगिया को-
और उसकी क्यारियों को -
बर्षों से-
आजमाई -
‘तुष्टि’ खाद,
‘बिभक्ति’ खाद,
‘केमिकल’ खाद,
किसम किसम की और भी खाद,
ऊपर से - इम्पोर्टेड खाद.

बगिया !
फिर भी बर्बाद .
‘घटिया’, घटती ‘पैदावार’,
बढती जाती 'खरपतवार',
बदले 'मालिक'
'माली' बदले
फिर वही -फटे हाल,
और पडौसी –
फटाफट आबाद.

'माली' ! !
सुन - पते की बात,
अबकी आजमा --
'अन्ना' खाद .
कम होगी- ‘खरपतवार’,

और बढ़ेगी ‘पैदावार’ l
फिर होगी, बगिया आबाद.

17 टिप्‍पणियां:

  1. कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

    जवाब देंहटाएं
  2. कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

    जवाब देंहटाएं
  3. वास्तव में आज देश को अन्ना खाद की शख्त जरूरत है. आपके विचार देश हित में अति उत्तम है.

    जवाब देंहटाएं
  4. बगिया !
    फिर भी बर्बाद .
    ‘घटिया’, घटती ‘पैदावार’,
    बढती जाती 'खरपतवार',
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!

    जवाब देंहटाएं
  5. संजय जी . आपके शब्दों हेतु आभार. स्नेह बनाए रखें.

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
  7. केवल जी नमस्कार,
    पूर्व में अजमाई हैं खादें बहुत सी,
    वो सभी निकलीं बहुत ही हानिकारक।
    शेष अन्ना खाद ही शायद बची है,
    आजमाकरके इसे भी देखते है।
    क्या यही गणतंत्र है

    जवाब देंहटाएं
  8. आप सभी का धन्यवाद,
    रविकर जी, आभार एवं स्वागतम.

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय, शास्त्री जी,
    आपके आशीर्वाद की अपेक्षा थी - आभार.

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह|||
    बहूत हि अच्छा लिखा है आपने..
    बेहतरीन रचना....

    जवाब देंहटाएं
  11. 'माली' ! !
    सुन - पते की बात,
    अबकी आजमा --
    'अन्ना' खाद .
    कम होगी- ‘खरपतवार’,

    WAH KYA KHOOB LIKHA HAI APNE ...SADAR BADHAI.

    जवाब देंहटाएं