‘नव सोच’ सिंचित,
‘नव सृजन’ हो हरित,
हर ‘मन उपवन’ में,
‘नव उल्लास’,
‘उमंग नव ’ हो पल्लवित,
हर ‘घर आगन’ में.
रहें दूर अवसाद कुटिल,
कुलसित,
हर ‘तन मन’ से,
हों नष्ट अज्ञान, अनीति, दुःखदारिद्र,
‘जन गण’ से.
बहे सुनीति, ‘सुख शांति’ की फुहार,
हर डगर में,
‘नव वर्ष’ ! लाए, आनन्द-बहार,
सर्वत्र विश्वभर में.