रविवार, 28 दिसंबर 2014

‘नव सृजन’


‘नव सोच’ सिंचित,
‘नव सृजन’ हो हरित,
हर ‘मन उपवन’ में,
‘नव उल्लास’,
उमंग नव ’ हो पल्लवित,
हर ‘घर आगन’ में.

रहें दूर अवसाद कुटिल, कुलसित,
हर ‘तन मन’ से,
हों नष्ट अज्ञान, अनीति, दुःखदारिद्र,
‘जन गण’ से.

बहे सुनीति, ‘सुख शांति’ की फुहार,
हर डगर में,
‘नव वर्ष’ ! लाए, आनन्द-बहार,
सर्वत्र विश्वभर में.

बुधवार, 26 दिसंबर 2012

" नमो भारतेंद्र "



स्व. श्रीमती इंदिरागांधी 'निर्भीक', 'कुशल नीति निर्धारक', 'साहसी' एवं  'दूरद्रष्टा' राजनेता / शासक  थी।  उन्हें अनुशासन, मेहनत और ईमानदारी में पूर्ण विश्वास था। 
वे समय रहते, समस्याओं की तह तक जा कर 'समाधान' खोज निकालती थी। 'विपक्ष्'  को वे भरपूर सम्मान देती थी। वर्ष 1971 के पाकिस्तान युद्ध के दौरान माननीय 'श्री अटल बिहारी वाजपेई' ने उन्हें "दुर्गा" उपमा दी थी। देश के कश्मीर , नार्थ ईस्ट आदि क्षेत्रों में 'अलगाववादी समस्याएं' उनके शासनकाल में न के बराबर थी। चापलूस नेता उनके इर्द गिर्द अधिक समय तक टिक नहीं पाते  थे।  संजय गाँधी के 'आक्रामक' व्यक्तित्व के कारण उनके शासनकाल की कुछ कमियों को छोड़ कर "भारत का भविष्य" उनके हाथ पूर्णतया सुरक्षित था।  उनका दिया हुआ नारा एवं उनका 'बलिदान'  युगों तक याद रखा जायेगा -

"एक ही जादू -  कड़ी मेहनत -  दूर दृष्टि - पक्का इरादा - अनुशासन"

स्व. राजीव गाँधी  भी  'कुशल नीति निर्धारक' एवं 'विवेकशील' थे। कहा जाता है कि नये राजनीतिज्ञ होने के कारण वे  अति चतुर नहीं थे और 'राजनीति' की  'भीतरघात' के शिकार बन गए  अन्यथा वे अच्छे  शासक  सिद्ध होते। 

इस बीच कई शासक आये और जुगनू की तरह टिम टिमा कर अस्त हो गए।

'श्री नरसिम्हाराव' चतुर शासक होते हुए भी येन केन प्रकारेण ' मौनीबाबा' बनकर अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण करने में ही व्यस्त रहे। 'देश' उचित विकाश की बात जोहता रहा।

'श्री अटल बिहारी वाजपेई' के समय देश में 'स्थिरता' एवं 'विकाश' का आभाष  होने लगा था।'बहुदलीय सरकार' (जिसे उन्होंने खुद "भानुमती का कुनबा' संज्ञा दी थी) बखूबी चलाने का प्रथम श्रेय ' अटल जी' को ही जाता है। कई चहुमुखी  विकाश योजनायें परवान चडी पर वर्षों से 'कमी' की पूर्ति महज पांच - छह सालों में होनी मुश्किल ही नहीं असंभव भी थी। कहते हैं अगले चुनाव में ' अटल जी' को अलग - थलग कर उनके द्वारा संचालित विकाश योजनाओं का 'श्रेय' लेने की होड़ ने 'अटल जी' को बहुत निराश किया। फलस्वरूप समयांतराल के बाद ' अटल जी' ने स्वास्थ्य  कारणों से सक्रिय राजनीति से किनारा कर लिया।

वर्तमान में 'श्री मनमोहन सिंह'  श्रीमती सोनियां गाँधी की अध्यक्षता में जिस तरह 'शासन' चला रहे हैं किसी से छिपा नहीं है। 

'श्री राहुल गाँधी' से उम्मीदें की जा रही है , वे सहानुभूति के पात्र अवश्य महसूस होते हैं पर 'राजनितिक परिपक्वता' का कोई ठोस सा उदाहरण वे अभी तक नहीं पेश कर पाए। लगता है देश को उनकी सेवाएं लेने हेतु अभी और इंतज़ार करना पड़ेगा।

भविष्य एक कुशल एवं परिपक्व राजनेता ( इन्द्र) की बाट  जोह रहा है .. और वो खूबियाँ दिख रही हैं "नरेन्द्र मोदी" में। 

'इंदिरा' के बाद ' नरेन्द्र' ही 'निर्भीक', 'कुशल नीति निर्धारक', 'साहसी' एवं  'दूरद्रष्टा' राजनेता / शासक हो सकते हैं। 

अतः "नरेन्द्र मोदी" अगर अगले "भारतेन्द्र" बनते  हैं तो एसा लगता है 'भारत'अवश्य ही एक नए युग में प्रवेश करेगा।       
   

सोमवार, 25 जून 2012

" नमो गंगे: "


" बंद बर्तन में संगृहीत  'गंगाजल' सौ साल तक भी नहीं सड़ता" यह पौराणिक  उक्ति,कुछ वर्ष पूर्व तक सत्य साबित होती थी. "हिमालयी प्राकृतिक औसधि एवं खनिज अवयव मिश्रण के फलस्वरूप "विषाणु नाशक  पदार्थ" 'गंगा' में समाहित  होते हैं.  इस प्रत्यक्ष्य पवित्रता के कारण  "गंगा" को हिमालय से उदभवित अन्य नदियों से उन्नत - जीवन दायिनी, सर्व रोग, दोष, पाप हारिणी देवी, पतित पावनी आदि नामों से नवाजा गया और वैदिक काल से बिना 'गंगाजल' धार्मिक अनुष्ठान व् देव पूजन कार्य अपूर्ण माने गए. 

सर्व  विदित है, आज  हमारी लापरवाही  के फलस्वरूप  जीवन दायनी 'गंगा नदी' अत्यधिक  प्रदूषित  हो  चुकी है. पर्यावरणविदों  के अनुसार  पर्वतों से उतरते ही तीर्थ नगरी 'हरिद्वार' में भी 'गंगा' स्नान करने योग्य  नहीं रह गई है. ज्यों ज्यों  गंगा आगे बढती रही, समय के साथ साथ मानव उत्सर्जित अवयवों के अतिरिक्त बिभिन्न उद्योगों  से  उत्सर्जित रासायनिक पदार्थ इसमें मिलते गए. बढती जनसँख्या के साथ  साथ  'समुचित नीति और इच्छा शक्ति '  के आभाव में गंगा मैली होती गई.

 प्रदूषण मुक्त  'गंगा'  हेतु वर्षों से कई आन्दोलन चल रहे हैं, कुछ जानें  भी जा चुकी हैं. हमारी सरकारें  'समस्या  समाधान' हेतु समय समय पर आश्वासन भी देती रहती हैं. सुना है एक प्राधिकरण  का भी गठन  किया गया है. काफी धन भी ब्यय  किया जा  चुका है.  शुद्धिकरण हेतु सामाजिक संस्थाओं द्वारा कई लीटर दूध भी गंगा जी में प्रवाहित किया जा चुका है, लेकिन प्रदुषण है कि कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है. 

कुछ दिन पूर्व इसी सन्दर्भ में दिल्ली के 'जन्तर्मंतर' पर विद्वान धर्माचार्यों ने 'सरकार का ध्यान इस दिशा में आकर्षित करने हेतु' एक दिन का सांकेतिक धरना दे कर एक तूफ़ान सा खड़ा कर दिया. सरकार से मांग की गई की जल्दी से जल्दी  गंगा को प्रदुषण मुक्त करने हेतु नीति बना कर क्रियान्वित नहीं की गई तो सारे भारत वर्ष के साधू संत अनिश्चित कालीन आन्दोलन करेंगे.

सरकार हरकत में आई और आनन् फानन  में 'उत्तराखंड' में गंगा नदी  ('अलकनंदा') पर निर्माणाधीन  बाँध  का  कार्य रुकवा  कर, इतिश्री कर ली  और कुछ समय के लिए तूफ़ान शांत हो गया 

मर्ज कहीं है, इलाज कहीं  बता कर, स्वार्थ पूरक तुस्टीकरण  नीति से किसी भी  समस्या का समाधान  नहीं हो सकता. 

'गंगा' ही नहीं अपितु हमारी समस्त नदियाँ  प्रदूषित होती जा रही हैं.

सरकार को समय रहते चापलूस, स्वार्थी और 'दिग्भ्रमित सलाहकारों' के मकडजाल से बाहर आ कर यथास्थिति का आकलन  करते हुए, नीति निर्धारण कर, क्रियान्वित  करने की नितांत आवश्यकता है, तभी गंगा जी का शुद्ध , पवित्र पूज्यनीय  स्वरूप वापस पाया जा सकता है.

 इस यज्ञ में सभी को यथासंभव सहयोग करना चाहिए.  नमो गंगे: .

शनिवार, 31 मार्च 2012

" ईर्ष्या "


                               
      क्रिकेट के आकर्षण से विनय व उसके साथी भी, बचपन से ही अछूते न थे . बात स्कूल के दिनों की है , जाड़ों की छुट्टियों में सभी साथी , आसपास के गॉवों की टीम बना कर 'टूर्नामेंट' आयोजित कर खूब मज़े  करते थे. गेंद व गिल्लियों का जुगाड़ किसी तरह कर लिया करते. सिवा विनय के, उस गॉव की टीम में सभी के पास अपना अपना बल्ला था. अपनी बारी आने पर, दोस्तों से बैट मांग  कर खेलना, विनय को खलने लगा. एक दिन पिताजी को अपनी ब्यथा सुना डाली. पिताजी द्रवित हुए और 'हलवाहे' द्वारा 'हल' के ' नस्यूडा' हेतु संजो कर रखी गयी 'बांज' की लकड़ी का बल्ला बनवा दिया गया. आम बल्ले से भारी इस बल्ले को विनय बहुत प्रेक्टिस के बाद काबू कर पाया.
     धीरे धीरे विनय अच्छा खेलने लगा. वह आल राउन्दर था. टीम में उसकी अहमियत बढ़ने लगी और टूर्नामेंट में विनय की टीम बार - बार जीतने लगी. विनय के हौसले आसमान पर थे. उसे अच्छी तरह मालुम था कि यह सब बल्ले का चमत्कार था जिस पर छूते ही 'बाल' कुछ दूर तो यों ही भाग जाती थी. वह टीम का हीरो  बन चुका था. अब तो नज़ारा ही कुछ और दिखने लगा था. जो सहपाठी  दूर दूर रहा करते थे या कम अहमियत दिया करते थे, करीब आने लगे. विनय कि ख़ुशी का ठिकाना ना रहा , जब 'जग्गू' (जगदीश) उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढाने लगा. जग्गू उससे  दो 'क्लास' आगे था और जूनियरों  को घास न डालता था.
     "निष्कपट मन, नि:स्वार्थ  दोस्ती" इस उम्र कि यही खासियत होती है. विनय ने भी एक कदम आगे बढ़कर दोस्ती लपकने में देर न लगाईं. जग्गू कृशकाय होने के वावजूद चतुर व मेघावी छात्र था. शातिर भी है, विनय को पता न था. बैटिंग उसके बस कि बात न थी, हाँ बालिंग अच्छी कर लेता था. जग्गू को विनय का टीम में चमकना बिलकुल न भाया-- कल का छोकरा, बैटिंग भी - बालिंग भी - और हम से आगे !..., उसका मन इर्ष्या से भर गया और विनय के 'पर' कतरने की योजना बना डाली.
      जग्गू और विनय की दोस्ती जल्दी ही परवान चढ़ गयी. अब जहाँ जग्गू वहां विनय. जल्दी ही जग्गू ने विनय को समझाना शुरू कर दिया....
यार दोस्त, इस बैट की वजह से तुम बहुत अच्छे रन नहीं बना पा रहे हो.
क्या बात करते हो.. विनय बोला.
अबे, यह बैट बेडौल व भारी है, तराश कर सुडौल व हल्का बनाया जा सकता है. फिर देखना ... 
      दोस्ती में भरोसा करना ही पड़ता है वह भी सीनियर का, विनय ने भी किया और बैट छिलवाया गया और हल्का हो गया.
अगले टूर्नामेंट में भी विनय ने खूब रन पीटे, और टीम फिर से जीत गयी. जग्गू का दॉव फेल हो गया पर वो हार न माना, फिर से पट्टी पढ़ाई....
देखा दोस्त, मेरी ट्रिक... और तराशना पढेगा बैट - फिर देखना रनों की बरसात...,
विनय मान गया और फिर से बैट छिलवा दिया गया. 
       अगले दिन टूर्नामेंट फाइनल था. बिनय की टीम भरपूर जोश में थी. अपोजिट टीम भी दमदार थी. विनय की बारी भी आ गई. पर यह क्या ? विनय का बैट दो ओवर भी ना झेल पाया. दूसरे ओवर की तीसरी बाल पर ज्यों ही विनय ने शार्ट मारा... बैट का हत्था हाथ में और अग्रभाग टूटकर दूर छिटक गया. विनय टीम सहित स्तब्ध रह गया....कुछ ही देर में पूरी टीम आउट हो गयी... और टीम हार गयी....

मैदान के दूसरे छोर पर ‘जग्गू’ दूसरे साथी से कानाफूसी कर रहा था... 'बहुत उछल रहा था कमीना,.....कपिलदेव समझने लगा था खुद को... आ गया ना ज़मीन पर....

अपनी टीम के हारने का कोई अफ़सोस जग्गू के चहरे पे लेशमात्र न था. जग्गू सफल हुआ.

आज भी 'जग्गू' जैसे लोग, हमारे इर्द - गिर्द, 'नीचे से ऊपर तक' भरे पड़े हैं जो दिन प्रतिदिन अपनी उपस्थिति का आभास कराते रहते हैं. 

(शब्दार्थ- १. "नस्यूडा"- 'हल' का अगला 'पार्ट' जो भूमि को चीरता है.
       २. "बांज" - 'शीशम' की तरह का पेड़, जिसकी लकड़ी मजबूत होती है. )   

शनिवार, 17 मार्च 2012

"दिशा निर्देशन"


         'विलक्षण प्रतिभा' कभी भी परिस्थितियों की मोहताज़ नहीं रहती. कठिन से कठिन बाधाएं, उसका मार्ग अवरुद्ध नहीं कर पाती.  'भारत भूमिमें भी- "जहाँ  'नीति निर्धारकों'  ने  समाज को बिभिन्न वर्ग - जातियों'ऊँच - नीच' के जंजाल में फसाकर, हमेशा अपना उल्लू सीधा किया है,"  अनेक महापुरुषों ने इस तथ्य को सिद्ध  किया है.  'बाबासाहब आंबेडकर' आदि इसके प्रत्यक्ष्य उदाहरण है. वर्तमान में हमबाबा रामदेव' की  प्रष्ठ भूमि में जाएँ तो एक उदाहरण और मिलता है. साधारण, गरीब किसान परिवार में जन्म और साथ में 'विकलांगता' लिए दर - दर की ठोकरें खाते हुए , जीवट  जिज्ञासा लिए हुए, 'एकाग्रता' के फल स्वरूप आज वो जिस मुकाम पर हैं किसी से छुपा  नहीं है. "योग" के साथ साथ उनके  निर्देश - निर्मित  दिव्य फार्मेसीके 'आयुर्वेदिक' उत्पादों से सभी परिचित हैं, जो अब खुले बाज़ार में उपलब्ध हैं

वर्तमान  व्यापारिक  'प्रतिस्पर्धता' युग में बाज़ार के दिग्गजों के कान खड़े होना स्वाभाविक है. बहुराष्टीय कम्पनियां, जो कि हमारे राजनेताओं - 'नीति निर्धारकोंकी  मेहरबानियों से  व्यापार - लाइसेंस प्राप्त करते हैं, बेचैन हैं. तरह तरह की भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं. हमारी कुछ  राजनीतिक पार्टियाँ  भी, कुछ दबी जुबान से,  तो कुछ प्रखरता से  विरोध की जुगत  भिड़ा रहे हैं. इस प्रकरण में  शायद कहीं उनका भीहित’ प्रभावित हो रहा हो, बरनास्वदेशी’ पर तो किसी को भी एतराज नहीं होना चाहिए.  कभी उत्पादों की गुणवत्ता, तो कभी 'योग' पर ही अंगुली उठा रहे हैं. इनके कारखाने  में 'श्रम शोषण', 'उद्योग अनियमिता, 'कर चोरी' आदि - आदि आरोप, आये दिन लगते रहते हैं. इनके सहयोगियों पर भी 'शैक्षिक योग्यता' सम्बन्धित आरोप लगते हैं.     
                                                                                                                                                                            
वर्तमान सरकार की 'कारगुजारियां' भी किसी से छुपी नहीं हैं, काफी जांच, खोजबीन इस दिशा में हो चुकी , पर अभी तक कोई भी आरोप सिद्ध हो पाया, एसा नहीं सुना.

"साधु- संत को इस तरह व्यापार नहीं करना चाहिए"  इस बात से भी सहमत नहीं हुआ जा सकता.  पूर्वकाल  में जितने  भी खोज , अनुसन्धान हुए हैं, ऋषि मुनियों, साधु संतों केदिशा निर्देशों’ से ही संभव हो पाए हैं क्योंकि ये लोग हीएकाग्रचित्त’ से "योग" और  'खोज' में लीन रहते थे , एसा हमारे एतिहासिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है.

कभी कभी लगता है कि 'मीडिया' जगत भी 'इस क्षेत्र' से  दूरियां बना रहा है. 'विज्ञापन पोषित 'मीडिया'  को  भी अपना  हित देखना है, क्योंकि 'रामदेव' ब्रांड उत्पादकुछ ख़ास 'टेलिविज़न चेनल्समेंखुद 'स्वामी रामदेव' द्वारा ही विज्ञापित होते हैं.  कहा नहीं जा सकता, उनके उत्पादों  में कितनी शुद्धता  है, लेकिन  इनके उत्पाद धीरे - धीरे  बाज़ार में पैठ बनाते जा  रहे हैं. इसमें कुछ बुराई भी नहीं दिखती

विविध - कच्चे माल के भण्डार, हमारे देश में, "स्वदेशी उत्पादन" तो हर दिशा से उचित है. उत्तम गुणवत्ता युक्त 'स्वदेशी उत्पादन'  के अगले कदम  में "चीन " व् अन्य देशों से मुकाबला कर, निर्यात किया जा सकता है. ‘स्वदेसी मुद्रा’ बचाते हुए , ‘विदेसी मुद्रा’ अर्जित की जा सकती है,  फलस्वरूप "भारत"  पुन: 'सोने की चिड़िया' बन सकता है 

आवश्यकता है दूरदर्शी सोच रखते हुए उचितदिशा निर्देशन” की. यदि 'बाबा रामदेव' इस दिशा में प्रयासरत हैं तो समूचे देशवासियों को पूर्वाग्रहों से उपर उठ कर,  इस महान कार्य में सहमत होना ही चाहिए