'ईश्वर' ने 'पृथ्वी' के समस्त जीवों में मनुष्य को श्रेष्ठतम मस्तिष्क / बुद्धि प्रदान की. इसी के साथ ही मनुष्य में 'सर्वोच्चता ' हांसिल करने की ‘तृष्णा’ भी जाग्रत हो गई. प्राचीन काल में ‘सर्वोच्चता ' को प्राप्त करने के लिए अनेकानेक प्रयोग हुए और सबसे कठिन मार्ग, 'तपष्या' (एकाग्रता) का मार्ग, उपयुक्त बताया गया. हमारे धर्म ग्रंथों में अनेक तथ्य संकलित हैं जो इसकी प्रमाणिकता सिद्ध करते हैं.
ऋषि मुनियों ने एकाग्रता / तप के फलस्वरूप ‘दिव्य ज्ञान’ प्राप्त कर उसका सदुपयोग 'लोककल्याण' हेतु किया एवं दुर्पयोग होने पर बिनाशकारी परिणाम होने का सन्देश दिया. "दिव्य ज्ञान / शक्तियों" के उपयोग, दुरपयोग, सुप्रभाव, कुप्रभाव की अनेक कहानियां प्रचलित हैं.
यह सर्वथा शाश्वत सत्य है- जीवन का सबसे कठिन 'कर्म' है - "तपस्या ".
वर्तमान काल में हम लोग प्रयोगात्मक (वैज्ञानिक) खोज के सहज मार्ग पर शोधरत हैं. 'एकाग्रता' इस काल में भी उतनी ही कारगर है. बिना 'एकाग्रता' के नित नए कीर्तिमान असंभव हैं. वर्तमान काल में 'ज्ञान' की जगह 'धन' ने ले ली है. तब 'ज्ञान' के सापेक्ष 'धन' की कोई महत्ता न थी, अब 'धन' के आगे पीछे बड़े बड़े ज्ञानी - ध्यानी (स्वयंभू) घूमते दीखते हैं. लगता है 'ज्ञान' बिलुप्त होता जा रहा है.
आज 'येन केन प्रकारेण' स्वार्थपरक ‘धनोपार्जन’ ही जीवन का उद्देश्य सा बन गया है. धर्म शास्त्रों में 'धन' को देवी स्वरूप - 'श्री लक्ष्मी' माना गया है, जिसका मान, सम्मान / प्रबंधन यथोचित हो तो जन कल्याणकारी फल प्राप्त होते हैं और मान, सम्मान / प्रबंधन यथोचित न हो तो बिनाशकारी फल प्राप्त होते हैं. कभी कभी लगता है, हम इसी दिशा में बढ रहे हैं.
'धन' का आय / ब्यय मार्ग का प्रबंधन कैसा है - आर्थिक मोर्चे पर, हर तरफ असमंजस की स्थिति है. 'बर्ष २०११' में पूरी दुनियां इसी बिषय पर केन्द्रित /आंदोलित रही. हम भी इससे अछूते न रह पाए. उचित एवं उत्तम प्रबंधन में 'एकाग्रता' की अवश्यमेव आवश्यकता है.
आइए सब लोग मिलकर लक्ष्य बनाएं कि हम "एकाग्रता", 'धन' से अधिक, 'ज्ञान' को दे कर, अपने अपने क्षेत्र में, 'उचित एवं उत्तम प्रबंधन' को भरपूर महत्ता दें और आने वाले समय का सुखद अनुभव प्राप्त करें.
"सभी को 'नव वर्ष २०१२', की हार्दिक शुभ कामनाएँ "
शनिवार, 31 दिसंबर 2011
गुरुवार, 29 दिसंबर 2011
“फूल”
'फूल' तुम्हारी बगिया के,
सुन्दर हैं,
मिलते जुलते से, मेरी बगिया से,
क्या हुआ ?
गर 'हम तुम'
बना ना पाए, इक गुलसितां - तब,
आओ, कि एक एक पौध लाएँ,
बगिया से अपनी अपनी ...
सृजित करें,
इक नई बगिया ,
और बनाएं, नयाँ गुलसितां - अब.
सींचें फिर, उसको - उम्रभर ,
सींचें फिर, उसको - उम्रभर......
सुन्दर हैं,
मिलते जुलते से, मेरी बगिया से,
क्या हुआ ?
गर 'हम तुम'
बना ना पाए, इक गुलसितां - तब,
आओ, कि एक एक पौध लाएँ,
बगिया से अपनी अपनी ...
सृजित करें,
इक नई बगिया ,
और बनाएं, नयाँ गुलसितां - अब.
सींचें फिर, उसको - उम्रभर ,
सींचें फिर, उसको - उम्रभर......
सोमवार, 19 दिसंबर 2011
'यादें'
'यादें' - खट्टी, मीठी,
वो गुज़रे लम्हों की,
अपनों की -
व रिश्तों की,
कम आती है अब मुझे,
ठीक उसी तरह----
चहचहाहट - चिड़ियों की,
घर की छोटी बगिया से,
कम आती है,
अब जिस तरह.
वो गुज़रे लम्हों की,
अपनों की -
व रिश्तों की,
कम आती है अब मुझे,
ठीक उसी तरह----
चहचहाहट - चिड़ियों की,
घर की छोटी बगिया से,
कम आती है,
अब जिस तरह.
गुरुवार, 15 दिसंबर 2011
'आँचल'
मित्रो, हमारी संस्कृति परिलक्षित यह 'रचना' आप सभी को समर्पित है.
‘माँ’, का हो या ‘नांनी’ का,
‘ममता’, का 'आधार' है 'आँचल'
‘दादी’ का हो या ‘दीदी’ का,
‘वात्सल्य’, का 'आभास' है 'आँचल'.
‘ताई’ का हो या ‘चाची’ का,
‘सुरक्षा’, का 'अम्बार' है 'आँचल'.
‘बुआ’ का हो या ‘मौसी’ का,
‘करुणा’ का 'शैलाब' है 'आँचल'.
‘भाभी’ का हो या ‘ननदी’ का,
'देवी' का 'श्रृंगार' है 'आँचल'.
“धोती’ का हो या ‘साड़ी’ का,
‘संसकारों’ की 'जननी' है 'आँचल'.”
बदसूरत हो या मैला हो,
‘भारत’ की 'खुसबू' है 'आँचल'.
“ 'बयार' पश्चिम की आती जाए,
‘आंधी’ से, बचाना है 'आँचल'.
सिमट, आ रहा ‘दुपट्टे’ पर ये,
'हंकी', न रह जाए 'आँचल'--- 'हंकी', ना बन जाए 'आँचल' “
सरल, ‘सनातन’, ‘सभ्य’ है आँचल,
भारत की 'गरिमा' है 'आँचल', --- भारत की 'गरिमा' है 'आँचल'
‘माँ’, का हो या ‘नांनी’ का,
‘ममता’, का 'आधार' है 'आँचल'
‘दादी’ का हो या ‘दीदी’ का,
‘वात्सल्य’, का 'आभास' है 'आँचल'.
‘ताई’ का हो या ‘चाची’ का,
‘सुरक्षा’, का 'अम्बार' है 'आँचल'.
‘बुआ’ का हो या ‘मौसी’ का,
‘करुणा’ का 'शैलाब' है 'आँचल'.
‘भाभी’ का हो या ‘ननदी’ का,
'देवी' का 'श्रृंगार' है 'आँचल'.
“धोती’ का हो या ‘साड़ी’ का,
‘संसकारों’ की 'जननी' है 'आँचल'.”
बदसूरत हो या मैला हो,
‘भारत’ की 'खुसबू' है 'आँचल'.
“ 'बयार' पश्चिम की आती जाए,
‘आंधी’ से, बचाना है 'आँचल'.
सिमट, आ रहा ‘दुपट्टे’ पर ये,
'हंकी', न रह जाए 'आँचल'--- 'हंकी', ना बन जाए 'आँचल' “
सरल, ‘सनातन’, ‘सभ्य’ है आँचल,
भारत की 'गरिमा' है 'आँचल', --- भारत की 'गरिमा' है 'आँचल'
बुधवार, 14 दिसंबर 2011
'बिचार'
आज एसा लगता है की यह 'धरा' रहने के अनुकूल नहीं रह गयी है बरबस ही रहना पड़ता है. इतनी मुश्किलें पैदा हो गई हैं की जीना दूभर होता जा रहा है. बड़े शहरों की स्थिति और भी बदतर है जहाँ आबादी करोडो तक भी है. दिन दहाड़े लूट लेने वाले गिरोह, फुटपाथ पर बैठने का भी चंदा वसूलने वाले गुंडे व दादा, अपहरण कर फिरोती वसूल करने वाले गैंग, आँखों में धूल झोंक कर जेब काटने वाले ठग, इन सबसे भरे पड़े हैं हमारे महानगर.
न्याय व व्यवस्था नाम की कोई चीज़ नहीं है.’जंगलराज’ की स्थिति है. बहुत सारे लोग सामाजिक व्यवस्था व अर्थ - व्यवस्था परिवर्तन हेतु प्रयत्नशील हैं, कितने सफल हुए ? यह एक प्रश्न है. गरीबी, भुखमरी, महंगाई पर नियंत्रण की घोषनाएं, चुनाव घोषनापत्रों में बंद पड़ी रह गई हैं. गरीब और ज्यादा गरीब हुआ है, अमीर ज्यादे अमीर. यह सब 'अहंकार', ‘स्वार्थपूरक’ व ‘अदूरदर्शी’ नीति-निर्धारण के फलस्वरूप हो रहा है. हर तरफ अशांति ही दिखती है.
पौराणिक कहानी है, एक बार अशांति से परेशान एक स्त्री और पुरुष - दोनों के मन में साधना की भावना जागी. दोनों एक साथ प़र अलग अलग दिशाओं में निकले. बर्षों तक सफल साधना करने के बाद उन्हें कुछ सिद्धियाँ प्राप्त हुई. साधना संपन्न कर दोनों पुन: वापसी मार्ग पर मिले, एक दुसरे को प्रणाम किया. पुरुष के मन में 'अहं' काम कर रहा था, स्त्री ने बात करने की चेष्टा की तो पुरुष बोला -यहाँ क्या बात करें? चलो उधर जलाशय के जल में चलते हुए बात करें . स्त्री समझ गई कि 'अहंकार' बोल रहा है. वह बोली- वहां क्या बात होगी, चलो आकाश में उड़ते हुए बात करें. पुरुष शांत हो गया. वह उड़ने की विद्या से अनभिज्ञ था.
स्त्री भांप कर मुस्कुराते हुए बोली- किस बात का ‘अहंकार’ ? आंखिर छोटी सी मछली भी पानी पर चल सकती है और नाचीज़ मक्खी भी आसमान में उड़ सकती है, चाहे उनकी उम्र सीमा बंधी हो. क्यों न हम 'नीति निर्धारण' के द्वारा ऐसी स्थिति का निर्माण करें, जिससे हम धरती को रहने लायक बना सकें और धरती पर चल सकें.
शनिवार, 10 दिसंबर 2011
‘व्हाई दिस कोलाब्रेसन’
मित्रो,
'कोलाब्रेसन' आजकल सर्वत्र विद्यमान है. व्यापार में, उद्योग में, राजनीति में, पार्टियों में, 'यत्र तत्र सर्वत्र' है 'कोलाब्रेसन'. यदि कहीं कम दिखता है, तो शायद 'मित्रता' में. बीमार 'सरकारी उपक्रमों' के 'मोडिफिकेसन' में यह प्राय: देखा जाता है. 'एयर इंडिया' आदि देर, सवेर इसकी 'जद' में पहुँचने वाले है. जब इसके "व्हाई दिस कोलाबेरी- कोलाबेरी" की तरह फैलने के आसार दिख रहे हैं, तो कुछ 'टूटे फूटे' से उदगार निकलते हैं --
व्हाई दिस कोलाब्रेसन, व्हाई दिस कोलाब्रेसन.
देशी 'फर्म' या बिदेशी में,
फॉर 'बैटर फार्मेसन'-?
ऑर, फॉर - ‘सेल्फ फंड ज़नरेसन'
व्हाई दिस, कोलाब्रेसन, व्हाई दिस कोलाब्रेसन,
'देश' में हो या प्रदेश में ,
ईस्ट में या वेस्ट यू.पी. में,
फार 'बैटर' स्तेव्लाइज़ेसन ?
ऑर, फार – ‘सेल्फ ओर्गनाइज़ेसन’.
व्हाई दिस, कोलाब्रेसन, व्हाई दिस कोलाब्रेसन,
पार्टी में हो या 'संगठन' में,
कमेटियों में, या नियमों में,
फॉर - बैटर परफार्मेसन ?
ऑर फॉर - 'सेल्फ ज़नरेसन'.
ऑर , इट फॉर द 'नेसन',
इट सुड बी 'फॉर द नेसन' - 'फॉर द नेसन'
मंगलवार, 6 दिसंबर 2011
‘एक फार्मूला’
‘देश’ से गरीबी हटाने हेतु, देश को विकसित देश' बनाने हेतु, 'जगतगुरु' बनाने हेतु,
आर्थिक महाशक्ति बनाने हेतु, 'महांन' बनाने हेतु --- कुछ प्रचलित फार्मूले -
1. हमारे पास कृषि हेतु खाद नहीं है -- 'इम्पोर्ट' करेंगे फिर धीरे धीरे यहीं डेवलप / नक़ल करेंगे.---
बनेंगे कृषि में आत्म निर्भर.
2. हमारे पास उद्योगों हेतु - इलेक्ट्रानिक , इलैक्ट्रिक, मकेनिकल, कमंयुन्केसन,चिप,आदि औद्योगिक टेक्नोलोजी नहीं है -- पूरा 'प्रोडक्ट' ही 'इम्पोर्ट' कर,एसेंम्बल कर बेचेंगे, फिर धीरे धीरे यहीं डेवलप / नक़ल करेंगे ---- बनेंगे उद्योगों में आत्म निर्भर.
3. सुरक्षा उपकरण/ जहाज, मिसाइल आदि भी इम्पोर्ट करेंगे क्योंकि हम उत्तम क्वालिटी बना ही नहीं पाते. धीरे धीरे ------बनेंगे सुरक्षा में भी आत्म निर्भर.
4. हमारे पास 'दुकानें' नहीं हैं - 'दुकानें' भी 'इम्पोर्ट' करेंगे, और सामान भी. हमारे लोगों को रोजगार भी मिलेगा, 'इम्पोर्टेड' 'सस्ता माल' भी ऊपर से - कमाई भी ----.”दूकान भी उन्हीं की , माल भी उन्हीं का”. 'हींग लगे न फिटकिरी - रंग चोखा'-----
अपने देश में डेवलपमेंट लैब / 'आर एन डी' आदि, फालतू के लफड़े क्यों पालें. क्यों अपने नागरिकों के 'दिमांग का कीमा' बनाएं हम . हमारी प्रतिभाएं 'विदेशों में नौकरी' कर देश का नाम रोशन करेंगी.
'बनेगा स्वावलंबी हमारा देश'
एक भद्रजन - एक फार्मूला ये भी अजमा सकते हैं --
अब कुछ 'नेताओं' / मंत्रियों को भी 'इम्पोर्ट' कर लें - धीरे धीरे हमारे नेता डेवलप होंगे और बन जायेगा देश ‘भरपूर’ "स्वावलंबी" और "महान".
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