सोमवार, 25 जून 2012

" नमो गंगे: "


" बंद बर्तन में संगृहीत  'गंगाजल' सौ साल तक भी नहीं सड़ता" यह पौराणिक  उक्ति,कुछ वर्ष पूर्व तक सत्य साबित होती थी. "हिमालयी प्राकृतिक औसधि एवं खनिज अवयव मिश्रण के फलस्वरूप "विषाणु नाशक  पदार्थ" 'गंगा' में समाहित  होते हैं.  इस प्रत्यक्ष्य पवित्रता के कारण  "गंगा" को हिमालय से उदभवित अन्य नदियों से उन्नत - जीवन दायिनी, सर्व रोग, दोष, पाप हारिणी देवी, पतित पावनी आदि नामों से नवाजा गया और वैदिक काल से बिना 'गंगाजल' धार्मिक अनुष्ठान व् देव पूजन कार्य अपूर्ण माने गए. 

सर्व  विदित है, आज  हमारी लापरवाही  के फलस्वरूप  जीवन दायनी 'गंगा नदी' अत्यधिक  प्रदूषित  हो  चुकी है. पर्यावरणविदों  के अनुसार  पर्वतों से उतरते ही तीर्थ नगरी 'हरिद्वार' में भी 'गंगा' स्नान करने योग्य  नहीं रह गई है. ज्यों ज्यों  गंगा आगे बढती रही, समय के साथ साथ मानव उत्सर्जित अवयवों के अतिरिक्त बिभिन्न उद्योगों  से  उत्सर्जित रासायनिक पदार्थ इसमें मिलते गए. बढती जनसँख्या के साथ  साथ  'समुचित नीति और इच्छा शक्ति '  के आभाव में गंगा मैली होती गई.

 प्रदूषण मुक्त  'गंगा'  हेतु वर्षों से कई आन्दोलन चल रहे हैं, कुछ जानें  भी जा चुकी हैं. हमारी सरकारें  'समस्या  समाधान' हेतु समय समय पर आश्वासन भी देती रहती हैं. सुना है एक प्राधिकरण  का भी गठन  किया गया है. काफी धन भी ब्यय  किया जा  चुका है.  शुद्धिकरण हेतु सामाजिक संस्थाओं द्वारा कई लीटर दूध भी गंगा जी में प्रवाहित किया जा चुका है, लेकिन प्रदुषण है कि कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है. 

कुछ दिन पूर्व इसी सन्दर्भ में दिल्ली के 'जन्तर्मंतर' पर विद्वान धर्माचार्यों ने 'सरकार का ध्यान इस दिशा में आकर्षित करने हेतु' एक दिन का सांकेतिक धरना दे कर एक तूफ़ान सा खड़ा कर दिया. सरकार से मांग की गई की जल्दी से जल्दी  गंगा को प्रदुषण मुक्त करने हेतु नीति बना कर क्रियान्वित नहीं की गई तो सारे भारत वर्ष के साधू संत अनिश्चित कालीन आन्दोलन करेंगे.

सरकार हरकत में आई और आनन् फानन  में 'उत्तराखंड' में गंगा नदी  ('अलकनंदा') पर निर्माणाधीन  बाँध  का  कार्य रुकवा  कर, इतिश्री कर ली  और कुछ समय के लिए तूफ़ान शांत हो गया 

मर्ज कहीं है, इलाज कहीं  बता कर, स्वार्थ पूरक तुस्टीकरण  नीति से किसी भी  समस्या का समाधान  नहीं हो सकता. 

'गंगा' ही नहीं अपितु हमारी समस्त नदियाँ  प्रदूषित होती जा रही हैं.

सरकार को समय रहते चापलूस, स्वार्थी और 'दिग्भ्रमित सलाहकारों' के मकडजाल से बाहर आ कर यथास्थिति का आकलन  करते हुए, नीति निर्धारण कर, क्रियान्वित  करने की नितांत आवश्यकता है, तभी गंगा जी का शुद्ध , पवित्र पूज्यनीय  स्वरूप वापस पाया जा सकता है.

 इस यज्ञ में सभी को यथासंभव सहयोग करना चाहिए.  नमो गंगे: .