वर्तमान व्यापारिक 'प्रतिस्पर्धता' युग में बाज़ार के दिग्गजों के कान खड़े होना स्वाभाविक है. बहुराष्टीय कम्पनियां, जो कि हमारे राजनेताओं - 'नीति निर्धारकों' की मेहरबानियों से व्यापार - लाइसेंस प्राप्त करते हैं, बेचैन हैं. तरह तरह की भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं. हमारी कुछ राजनीतिक पार्टियाँ भी, कुछ दबी जुबान से, तो कुछ प्रखरता से विरोध की जुगत भिड़ा रहे हैं. इस प्रकरण में शायद कहीं उनका भी ‘हित’ प्रभावित हो रहा हो, बरना ‘स्वदेशी’ पर तो किसी को भी एतराज नहीं होना चाहिए. कभी उत्पादों की गुणवत्ता, तो कभी 'योग' पर ही अंगुली उठा रहे हैं. इनके कारखाने में 'श्रम शोषण', 'उद्योग अनियमिता, 'कर चोरी' आदि - आदि आरोप, आये दिन लगते रहते हैं. इनके सहयोगियों पर भी 'शैक्षिक योग्यता' सम्बन्धित आरोप लगते हैं.
वर्तमान सरकार की 'कारगुजारियां' भी किसी से छुपी नहीं हैं, काफी जांच, खोजबीन इस दिशा में हो चुकी , पर अभी तक कोई भी आरोप सिद्ध हो पाया, एसा नहीं सुना.
"साधु- संत को इस तरह व्यापार नहीं करना चाहिए" इस बात से भी सहमत नहीं हुआ जा सकता. पूर्वकाल में जितने भी खोज , अनुसन्धान हुए हैं, ऋषि मुनियों, साधु संतों के ‘दिशा निर्देशों’ से ही संभव हो पाए हैं क्योंकि ये लोग ही ‘एकाग्रचित्त’ से "योग" और 'खोज' में लीन रहते थे , एसा हमारे एतिहासिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है.
कभी कभी लगता है कि 'मीडिया' जगत भी 'इस क्षेत्र' से दूरियां बना रहा है. 'विज्ञापन पोषित' 'मीडिया' को भी अपना हित देखना है, क्योंकि 'रामदेव' ब्रांड उत्पाद, कुछ ख़ास 'टेलिविज़न चेनल्स' में, खुद 'स्वामी रामदेव' द्वारा ही विज्ञापित होते हैं. कहा नहीं जा सकता, उनके उत्पादों में कितनी शुद्धता है, लेकिन इनके उत्पाद धीरे - धीरे बाज़ार में पैठ बनाते जा रहे हैं. इसमें कुछ बुराई भी नहीं दिखती.
विविध - कच्चे माल के भण्डार, हमारे देश में, "स्वदेशी उत्पादन" तो हर दिशा से उचित है. उत्तम गुणवत्ता युक्त 'स्वदेशी उत्पादन' के अगले कदम में "चीन " व् अन्य देशों से मुकाबला कर, निर्यात किया जा सकता है. ‘स्वदेसी मुद्रा’ बचाते हुए , ‘विदेसी मुद्रा’ अर्जित की जा सकती है, फलस्वरूप "भारत" पुन: 'सोने की चिड़िया' बन सकता है.
आवश्यकता है दूरदर्शी सोच रखते हुए उचित “दिशा निर्देशन” की. यदि 'बाबा रामदेव' इस दिशा में प्रयासरत हैं तो समूचे देशवासियों को पूर्वाग्रहों से उपर उठ कर, इस महान कार्य में सहमत होना ही चाहिए.
आपकी बातें विचारणीय हैं ....निश्चित रूप से हमें गहन मंथन की आवश्यकता है ...!
जवाब देंहटाएंकेवल जी, आपका आभार.
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
सादर आभार.
हटाएंagree with you...
जवाब देंहटाएंसादर, धन्यवाद.
हटाएंkya aapki ye post main apne blog par aapke naam ke sath post kar sakti hun? kripya p4panchi@gmail.com par reply kare.
जवाब देंहटाएंनेताओं को देश में निर्मित माल से "माल" नहीं मिलता इसलिए विदेशी माल से "माल" बनाते हैं .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख है .
सु स्वागतम, राजपूत जी. स्नेह बनाए रखें.
जवाब देंहटाएंस्वदेसी मुद्रा’ बचाते हुए , ‘विदेसी मुद्रा’ अर्जित की जा सकती
जवाब देंहटाएंसही चिंतन
वंदना जी,.. सादर.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति, अच्छा प्रयास।
जवाब देंहटाएंविचारणीय विषय।
धन्यवाद
आनन्द विश्वास
ननीय आनंद जी, सुस्वागतम. स्नेह बनाये रखें.
जवाब देंहटाएंस्वागतम, दिनेश जी...सादर.
जवाब देंहटाएंवाह !!!!! बहुत सुंदर आलेख ,क्या बात है,बेहतरीन सार्थक सटीक अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
Dhanyavaad, Dheerendar ji.
हटाएंपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
जवाब देंहटाएं.....सुन्दर प्रस्तुति विचारणीय विषय है केवल जी
Sanjay ji,...abhaar.
जवाब देंहटाएं'रामदेव' ब्रांड उत्पाद, कुछ ख़ास 'टेलिविज़न चेनल्स' में, खुद 'स्वामी रामदेव' द्वारा ही विज्ञापित होते हैं. कहा नहीं जा सकता, उनके उत्पादों में कितनी शुद्धता है, लेकिन इनके उत्पाद धीरे - धीरे बाज़ार में पैठ बनाते जा रहे हैं. इसमें कुछ बुराई भी नहीं दिखती.
जवाब देंहटाएंएक सटीक और स्पष्ट वक्तव्य ....यकीन इसमें बुराई है भी नहीं.......
sadar..
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