" बंद बर्तन में संगृहीत 'गंगाजल' सौ साल तक भी नहीं सड़ता" यह पौराणिक उक्ति,कुछ वर्ष पूर्व तक सत्य साबित होती थी. "हिमालयी प्राकृतिक औसधि एवं खनिज अवयव मिश्रण के फलस्वरूप "विषाणु नाशक पदार्थ" 'गंगा' में समाहित होते हैं. इस प्रत्यक्ष्य पवित्रता के कारण "गंगा" को हिमालय से उदभवित अन्य नदियों से उन्नत - जीवन दायिनी, सर्व रोग, दोष, पाप हारिणी देवी, पतित पावनी आदि नामों से नवाजा गया और वैदिक काल से बिना 'गंगाजल' धार्मिक अनुष्ठान व् देव पूजन कार्य अपूर्ण माने गए.
सर्व विदित है, आज हमारी लापरवाही के फलस्वरूप जीवन दायनी 'गंगा नदी' अत्यधिक प्रदूषित हो चुकी है. पर्यावरणविदों के अनुसार पर्वतों से उतरते ही तीर्थ नगरी 'हरिद्वार' में भी 'गंगा' स्नान करने योग्य नहीं रह गई है. ज्यों ज्यों गंगा आगे बढती रही, समय के साथ साथ मानव उत्सर्जित अवयवों के अतिरिक्त बिभिन्न उद्योगों से उत्सर्जित रासायनिक पदार्थ इसमें मिलते गए. बढती जनसँख्या के साथ साथ 'समुचित नीति और इच्छा शक्ति ' के आभाव में गंगा मैली होती गई.
प्रदूषण मुक्त 'गंगा' हेतु वर्षों से कई आन्दोलन चल रहे हैं, कुछ जानें भी जा चुकी हैं. हमारी सरकारें 'समस्या समाधान' हेतु समय समय पर आश्वासन भी देती रहती हैं. सुना है एक प्राधिकरण का भी गठन किया गया है. काफी धन भी ब्यय किया जा चुका है. शुद्धिकरण हेतु सामाजिक संस्थाओं द्वारा कई लीटर दूध भी गंगा जी में प्रवाहित किया जा चुका है, लेकिन प्रदुषण है कि कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है.
कुछ दिन पूर्व इसी सन्दर्भ में दिल्ली के 'जन्तर्मंतर' पर विद्वान धर्माचार्यों ने 'सरकार का ध्यान इस दिशा में आकर्षित करने हेतु' एक दिन का सांकेतिक धरना दे कर एक तूफ़ान सा खड़ा कर दिया. सरकार से मांग की गई की जल्दी से जल्दी गंगा को प्रदुषण मुक्त करने हेतु नीति बना कर क्रियान्वित नहीं की गई तो सारे भारत वर्ष के साधू संत अनिश्चित कालीन आन्दोलन करेंगे.
सरकार हरकत में आई और आनन् फानन में 'उत्तराखंड' में गंगा नदी ('अलकनंदा') पर निर्माणाधीन बाँध का कार्य रुकवा कर, इतिश्री कर ली और कुछ समय के लिए तूफ़ान शांत हो गया
मर्ज कहीं है, इलाज कहीं बता कर, स्वार्थ पूरक तुस्टीकरण नीति से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता.
'गंगा' ही नहीं अपितु हमारी समस्त नदियाँ प्रदूषित होती जा रही हैं.
सरकार को समय रहते चापलूस, स्वार्थी और 'दिग्भ्रमित सलाहकारों' के मकडजाल से बाहर आ कर यथास्थिति का आकलन करते हुए, नीति निर्धारण कर, क्रियान्वित करने की नितांत आवश्यकता है, तभी गंगा जी का शुद्ध , पवित्र पूज्यनीय स्वरूप वापस पाया जा सकता है.
इस यज्ञ में सभी को यथासंभव सहयोग करना चाहिए. नमो गंगे: .
बहुत सार्थक और सटीक लेख |
जवाब देंहटाएंआशा
धन्यवाद, आशा जी. स्नेह बनाए रहें.
जवाब देंहटाएंमन को प्रभावित करता सार्थक आलेख ,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
धीरेन्द्र जी, आभार..
हटाएंसुंदर आव्हान ..... सार्थक विचार लिए पोस्ट
जवाब देंहटाएंस्नेह बनाए रहें...धन्यवाद.
हटाएंभाई साहब टिप्पणियाँ हमारी स्पैम बोक्स में जा रहीं हैं कृपया चेक करें .कल वाली टिपण्णी नदारद है .
जवाब देंहटाएंजी भाई साहब , आगे को अवश्य ध्यान दूंगा. आपकी प्रथम टिपण्णी भी स्पेम में पहुची थी .. कृपया.., स्नेह बनाए रखें. धन्यवाद.
हटाएंbahut hi sarthak v vicicharniy prastuti
जवाब देंहटाएंaabhaar
poonam
धन्यवाद पूनम जी, आपके और मरे ब्लॉग का नाम अनजाने में मिलता जुलता हो गया है. मैं दूसरा नाम सोच रहा हूँ , कृपया क्षमा करें.
हटाएंसार्थक एवं विचारणीय पोस्ट
जवाब देंहटाएंयदि हमें गंगा जमुना जैसी पवित्र नदियों को बचाना है तो पहला और जरूरी काम यह है कि अपने हर क्रिया कलाप में प्रकृति के महत्त्व को पहले ध्यान में रखना होगा और उसके लिये अपनाना होगा सीमित और विवेकपूर्ण उपभोग का सिद्धांत
जी, सही कहा अपने.. आभार.
जवाब देंहटाएंwaakai me ye chinta ki bat hai hamen jagruk hona hi chahiye .....
जवाब देंहटाएंसादर ...
हटाएंसार्थक एवं विचारणीय पोस्ट..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन....
धन्यवाद.
हटाएंJoshi ji, namaskar
जवाब देंहटाएंbahut sundar srijan, badhai.
प्रिय महोदय
"श्रम साधना "स्मारिका के सफल प्रकाशन के बाद
हम ला रहे हैं .....
स्वाधीनता के पैंसठ वर्ष और भारतीय संसद के छः दशकों की गति -प्रगति , उत्कर्ष -पराभव, गुण -दोष , लाभ -हानि और सुधार के उपायों पर आधारित सम्पूर्ण विवेचन, विश्लेषण अर्थात ...
" दस्तावेज "
जिसमें स्वतन्त्रता संग्राम के वीर शहीदों की स्मृति एवं संघर्ष गाथाओं , विजय के सोल्लास और विभाजन की पीड़ा के साथ-साथ भारतीय लोकतंत्र की यात्रा कथा , उपलब्धियों , विसंगतियों ,राजनैतिक दुरागृह , विरोधाभाष , दागियों -बागियों का राजनीति में बढ़ता वर्चस्व , अवसरवादी दांव - पेच तथा गठजोड़ के दुष्परिणामों , व्यवस्थागत दोषों , लोकतंत्र के सजग प्रहरियों के सदप्रयासों तथा समस्याओं के निराकरण एवं सुधारात्मक उपायों सहित वह समस्त विषय सामग्री समाहित करने का प्रयास किया जाएगा , जिसकी कि इस प्रकार के दस्तावेज में अपेक्षा की जा सकती है /
इस दस्तावेज में देश भर के चर्तित राजनेताओं ,ख्यातिनामा लेखकों, विद्वानों के लेख आमंत्रित किये गए है / स्मारिका का आकार ए -फॉर (11गुणे 9 इंच ) होगा तथा प्रष्टों की संख्या 600 के आस-पा / विषयानुकूल लेख, रचनाएँ भेजें तथा साथ में प्रकाशन अनुमति , अपना पूरा पता एवं चित्र भी / लेख हमें हर हालत में 30 जुलाई 2012 तक प्राप्त हो जाने चाहिए ताकि उन्हें यथोचित स्थान दिया जा सके /
हमारा पता -
जर्नलिस्ट्स , मीडिया एंड राइटर्स वेलफेयर एसोसिएशन
19/ 256 इंदिरा नगर , लखनऊ -226016
ई-मेल : journalistsindia@gmail.com
मोबाइल 09455038215
Dhanyavaad, Shukla ji. bhavishya men apki activities men shamil hone ki bharpur koshis hogi.. saadar...
जवाब देंहटाएंबाँध होना या न होना ये एक निर्णय हो सकता है पर जो भी हो इमानदारी और तार्किक निर्णय होना चाहिए भावनाओं और समृद्धि कों रख के होना चाहिए न की व्यक्तिगत लाभ के लिए ....
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी, सही कहा आपने. आभार.
हटाएंमर्ज कहीं है, इलाज कहीं बता कर, स्वार्थ पूरक तुस्टीकरण नीति से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता.
जवाब देंहटाएं'गंगा' ही नहीं अपितु हमारी समस्त नदियाँ प्रदूषित होती जा रही हैं...
..
गहन चिंतन से भरी प्रस्तुति के लिए आभार
कविता जी, सादर ....आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंसादर ....आभार.
हटाएंआपके इस यज्ञ में हम साथ हैं ....!!
जवाब देंहटाएंसम्माननीया हरकीरत जी, स्वागतम एवं धन्यवाद. कृपया स्नेह बनाये रहें.
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंsarthak post, abhar.
जवाब देंहटाएंप्रिय महोदय
"श्रम साधना "स्मारिका के सफल प्रकाशन के बाद
हम ला रहे हैं .....
स्वाधीनता के पैंसठ वर्ष और भारतीय संसद के छः दशकों की गति -प्रगति , उत्कर्ष -पराभव, गुण -दोष , लाभ -हानि और सुधार के उपायों पर आधारित सम्पूर्ण विवेचन, विश्लेषण अर्थात ...
" दस्तावेज "
जिसमें स्वतन्त्रता संग्राम के वीर शहीदों की स्मृति एवं संघर्ष गाथाओं , विजय के सोल्लास और विभाजन की पीड़ा के साथ-साथ भारतीय लोकतंत्र की यात्रा कथा , उपलब्धियों , विसंगतियों ,राजनैतिक दुरागृह , विरोधाभाष , दागियों -बागियों का राजनीति में बढ़ता वर्चस्व , अवसरवादी दांव - पेच तथा गठजोड़ के दुष्परिणामों , व्यवस्थागत दोषों , लोकतंत्र के सजग प्रहरियों के सदप्रयासों , ज्वलंत मुद्दों तथा समस्याओं के निराकरण एवं सुधारात्मक उपायों सहित वह समस्त विषय सामग्री समाहित करने का प्रयास किया जाएगा , जिसकी कि इस प्रकार के दस्तावेज में अपेक्षा की जा सकती है /
इस दस्तावेज में देश भर के चर्तित राजनेताओं ,ख्यातिनामा लेखकों, विद्वानों के लेख आमंत्रित किये गए है / स्मारिका का आकार ए -फोर (11गुणे 9 इंच ) होगा तथा प्रष्टों की संख्या 600 के आस-पास / इस अप्रतिम, अभिनव अभियान के साझीदार आप भी हो सकते हैं / विषयानुकूल लेख, रचनाएँ भेजें तथा साथ में प्रकाशन अनुमति , अपना पूरा पता एवं चित्र भी / विषय सामग्री केवल हिन्दी , उर्दू अंगरेजी भाषा में ही स्वीकार की जायेगी / लेख हमें हर हालत में 10 सितम्बर 2012 तक प्राप्त हो जाने चाहिए ताकि उन्हें यथोचित स्थान दिया जा सके /
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जर्नलिस्ट्स , मीडिया एंड राइटर्स वेलफेयर एसोसिएशन
19/ 256 इंदिरा नगर , लखनऊ -226016
ई-मेल : journalistsindia@gmail.com
मोबाइल 09455038215
Great article. Your blogs are unique and simple that is understood by anyone.
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